Friday 13 May 2022

ट्रैफिक सिग्नल पर फूल बेचने वाली लड़की, आज अमेरिका में कर रही है रिसर्च का अपना सपना पुरा

ट्रैफिक सिग्नल पर फूल बेचने वाली लड़की, आज अमेरिका में कर रही है रिसर्च का अपना सपना पुरा


नई दिल्ली: मुश्किलों से लड़ते हुए शरीर को तपा कर सफलता की उड़ान भरने वाली फिल्मी कहानियां तो आपने बहुत देखी होंगी, पर यह रीयल स्टोरी है। कहानी एक ऐसी लड़की की, जिसे हालात ने मुंबई के ट्रैफिक सिग्नल्स पर फूल बेचने के लिए खड़ा कर दिया। लेकिन उसने हार नहीं मानी। दोष भी नहीं दिया न तो अपनी परिस्थितियों को और न ही अपनी किस्मत को। मुंबई की झोपड़पट्टी में रहने वाली वह लड़की अपनी किस्मत खुद गढ़ना शुरू करती है। वह JNU पहुंचती है। यूपी के जौनपुर से ताल्लुक रखने वाली उस लड़की के सपने पूरे होने अभी बाकी थे। उसने जो सफर शुरू किया था उसकी मंजिल दूर थी। अमेरिका से उसके लिए फेलोशिप आई और वह अमेरिका के लिए उड़ चली। इस रीयल हीरो का नाम सरिता माली है।


तब फूल बेचने के लिए गाड़ियों के पीछे दौड़ती थीं

सरिता उस समय छठवीं कक्षा में पढ़ती थीं जब पिता के साथ उन्हें मुंबई के ट्रैफिक सिग्नल्स पर फूल बेचने के लिए गाड़ियों के पीछे दौड़ना पड़ता था। फूल बिकते तो परिवार दिनभर में मुश्किल से 300 रुपए कमा पाता था। आज 28 साल की जेएनयू रिसर्च स्कॉलर अमेरिका में पीएचडी कर रही हैं। वह मुंबई के घाटकोपर इलाके के पास की झुग्गी में पली-बढ़ी। उन्होंने बचपन में लड़की होने और स्किन कलर के कारण भेदभाव देखा था। हालांकि हर कदम पर उनके पिता साथ में खड़े रहे। उनके पिता ने अपने गांव में देखा था कि पढ़ाई के बाद ऊंची जाति के लोग सब कुछ हासिल कर सकते थे। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाने का फैसला किया।

ट्यूशन पढ़कर बचाए पैसे

10वीं की पढ़ाई के बाद माली ने अपने इलाके के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। वह अपने पिता की खूब पढ़ने की इच्छा पूरी करना चाहती थीं। पैसे बचाकर उन्होंने केजे सोमैया कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स में दाखिला लिया। उनसे प्रेरित होकर बड़ी बहन और दो भाइयों ने भी पढ़ाई को नहीं रोका। उनके पिता ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट में अंतर नहीं समझते, लेकिन वह इतना जरूर जानते हैं कि शिक्षा सबसे बड़ी ताकत है।
फेसबुक पोस्ट में माली ने अपने संघर्षों की दास्तां शेयर की है। उन्होंने लिखा कि अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में मेरा चयन हुआ है- यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन... मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया को वरीयता दी है। मुझे इस यूनिवर्सिटी ने मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक 'चांसलर फ़ेलोशिप' दी है।

मुंबई की झोपड़पट्टी, जेएनयू , कैलिफ़ोर्निया, चांसलर फ़ेलोशिप, अमेरिका और हिंदी साहित्य... अपने सफर को याद करते हुए सरिता कहती हैं कि सफर के अंत में हम भावुक हो उठते हैं क्योंकि ये ऐसा सफ़र होता है जहां मंजिल की चाह से अधिक उसके साथ की चाह अधिक सुकून देती है। उन्होंने कहा - यह मेरी कहानी है मेरी अपनी कहानी।

(स्रोत : नवभारत टाइम्स)


No comments:

Post a Comment