Monday 17 April 2023

अतीक के आतंक का खौफ ऐसा था कि 10 जजों ने केस से खुद को कर लिया था अलग

अतीक के आतंक  का खौफ ऐसा था कि 10 जजों ने केस से खुद को कर लिया था अलग



माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का अंत इस तरह होगा ऐसा किसने सोचा होगा। एक बार सांसद, पांच बार विधायक रहे माफिया अतीक पर 44 साल पहले पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। तब से अब तक उसके ऊपर सौ से अधिक मामले दर्ज हुए, लेकिन पहली बार उमेश पाल अपहरण कांड में उसे दोषी ठहराया गया और उम्रकैद की सजा हुई। एक वक्त था जब अतीक के केस से जज भी थर्राते थे। अतीक की जमानत याचिका पर सुनवाई से 10 जजों ने खुद को अलग लिया। आइए जानते हैं क्या था वो पूरा वाकया...

साल 2012 में अतीक जेल में बंद था और यूपी में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी जमानत के लिए याचिका दायर की। अतीक की याचिका पर सुनवाई से हाईकोर्ट के 10 जजों ने खुद को अलग कर लिया और 11वें जज ने सुनवाई की। इन्होंने अतीक की जमानत याचिका मंजूर कर ली और अतीक जेल से बाहर आकर चुनाव लड़ा। हालांकि अतीक राजू पाल की पत्नी पूजा पाल से चुनाव हार जाता है। 

44 साल पहले अतीक पर दर्ज हुआ था पहला मुकदमा
साल 1962 प्रयागराज का चकिया गांव। तांगा चलाने वाले फिरोज अहमद के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा अतीक अहमद। फिरोज घर में अकेले कमाने वाले थे। जैसे-तैसे पैसे का इंतजाम कर अतीक को पढ़ाते, लेकिन उसका पढ़ाई में एकदम मन नहीं लगता था। नतीजा ये हुआ कि वो 10वीं में फेल हो गया। इसके बाद उसने पढ़ाई पूरी तरह छोड़ दी। अब उसे जल्द से जल्द अमीर बनने का चस्का लग गया। लेकिन पैसा कमाने के लिए उसने मेहनत करना नहीं, बल्कि एक शॉर्टकट को चुना। लूट और अपहरण करके पैसा वसूलने का शॉर्टकट। वो रंगदारी वसूलने के लिए लोगों की हत्या तक को अंजाम देने लगा। साल 1979 में अतीक पर पहली बार एक हत्या का केस दर्ज हुआ।

जेल से बचने के लिए राजनीति का लिया सहारा
अतीक को जेल से बाहर आते ही समझ आ गया कि अब जेल से बचने के लिए राजनीति ही उसके काम आ सकती है। इसलिए उसने राजनीति में कदम रखने का निर्णय लिया। साल 1989 तक अतीक पर करीब 20 मामले दर्ज हो चुके थे। उसका प्रयागराज के पश्चिमी हिस्से पर दबदबा हो गया। 1989 में उसने पहली बार विधायक का चुनाव लड़ने का फैसला किया। किसी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय खड़ा हो गया।

अतीक के सामने कांग्रेस के गोपालदास यादव प्रत्याशी थे। साथ ही अतीक का बढ़ता दबदबा चांद बाबा को भी अखरने लगा इसलिए वो भी अतीक को हारने के लिए चुनाव में खड़ा हो गया। चुनाव हुआ। नतीजे आए तो अतीक को 25,906 वोट मिले। वह 8,102 वोट से जीतकर पहली बार विधायक बन गया।

दिनदहाड़े, बीच बाजार चांद बाबा की हत्या कर दी
विधायक बनने के करीब तीन महीने बाद अतीक अपने गुर्गों के साथ रोशनबाग में चाय की टपरी पर बैठा था। अचानक चांद बाबा अपने साथियों के साथ वहां आया और दोनों गैंग के बीच गैंगवार शुरू हो गई। पूरा बाजार गोलियों, बम और बारूद से पट गया। इसी गैंगवार में चांद बाबा की मौत हो गई।

कुछ महीनों में एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया। चांद बाबा के ज्यादातर गुर्गे मार दिए गए, बाकी वहां से भाग गए। चांद बाबा की हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा। लेकिन विधायक होने की वजह से उस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। चांद बाबा की मौत के पीछे गैंग की मुठभेड़ को कारण बताया गया। आज तक अतीक इस मामले में दोषी साबित नहीं हो पाया।

(स्रोत: अमर उजाला) 

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