Saturday 22 January 2022

बाकी दलों को कितनी टेंशन देगी पुरानी पेंशन, अखिलेश के दांव से सकते में बाकी पार्टियां

बाकी दलों को कितनी टेंशन देगी पुरानी पेंशन, अखिलेश के दांव से सकते में बाकी पार्टियां




लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनावों में पुरानी पेंशन की बहाली का ऐलान कर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने एक बड़ा राजनीतिक दांव चल दिया है। यह ऐलान करके उन्होंने ऐसे करीब 13 लाख कर्मचारियों और शिक्षकों का दिल जीतने का प्रयास किया है, जो 2005 के बाद भर्ती हुए हैं। वहीं, उन 11 लाख पुराने कर्मचारियों और इतने ही पेंशनरों को साधने की कोशिश की है, जिन्हें भले पुरानी पेंशन मिल रही थी लेकिन वे नए कर्मचारियों के समर्थन में लड़ाई लड़ रहे थे। अब इसे कैसे लागू किया जाएगा और कितना वित्तीय भार पड़ेगा, इसको लेकर पक्ष-विपक्ष और कर्मचारी नेताओं के बीच मंथन चल रहा है। लेकिन, यह जरूर है कि अखिलेश के इस कदम ने बाकी दलों को सकते में डाल दिया है। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि उन्होंने तो सभी दलों से इसे अपने घोषणापत्र में शामिल करने के लिए पत्र लिखा था, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा।

नई पेंशन और उसके विरोध की वजह

साल 2005 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने और उसके बाद भर्ती कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना लागू की थी। लंबे समय तक चली चर्चा के बाद ज्यादातर राज्य सरकारों ने अपने कर्मचारियों पर भी आगे-पीछे इसे लागू कर दिया। पश्चिम बंगाल और केरल ने इसे लागू नहीं किया। इस योजना के तहत भी सरकार पुरानी पेंशन की तरह कर्मचारियों के हिस्से से पैसा काटती है और अपने हिस्से से पैसा मिलाती है। कर्मचारियों का कहना है कि इसके बावजूद इस बात की गारंटी नहीं है कि उन्हें कितनी पेंशन मिलेगी? मिलेगी भी या नहीं? इसकी वजह है कि सरकार यह पैसा निजी कंपनियों के शेयर और म्युचुअल फंड में निवेश करती है। घाटा हो गया तो वह कर्मचारी के हिस्से जाता है। अटेवा के प्रदेश महामंत्री नीरज पति त्रिपाठी बताते हैं कि हाल ही में वाराणसी में एक प्रिंसिपल की रिटायरमेंट के बाद पेंशन चार हजार रुपया बनी। इतना ही नहीं किसी की 700 तो किसी की 800 रुपया महीना पेंशन के भी मामले आए।

लागू करने में दिक्कतें

अब पुरानी पेंशन के लिए तरीका क्या होगा? सवाल यह उठ रहा है कि क्या इसके लिए केंद्र सरकार से मंजूरी की जरूरत होगी। इस बारे में अटेवा के प्रदेश महामंत्री नीरज त्रिपाठी कहते हैं कि आरटीआई के तहत केंद्र सरकार ने जवाब दिया था कि राज्य सरकार पुरानी पेंशन अपने स्तर पर लागू कर सकती हैं। वहीं, अर्थशास्त्री प्रफेसर एपी तिवारी कुछ दिक्कतें बताते हैं। वह कहते हैं कि राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए विश्व बैंक के कहने पर आर्थिक उदारीकरण की नीतियां प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और फिर अटल बिहारी वाजपेयी के समय शुरू की गईं। वह कहते हैं कि सरकार पहले भी कॉर्पस फंड बनाकर निवेश करती थी, अब भी करेगी। अगर नुकसान होगा तो सरकार को वहन करना पड़ेगा। वह कहीं और से डायवर्ट करके देगी। ऐसे में सरकारी खजाने पर तो भार पड़ेगा ही। दूसरी बात यह कि साल 2005 से सरकारें निजी कंपनियों में निवेश कर रही हैं। वह रकम मैच्यॉरिटी से पहले वापस लेने पर कंपनियां अपनी शर्तों के साथ कुछ कटौती भी करेंगी। ऐसे में दोबारा पुरानी पेंशन बहाल करना आसान नहीं होगा।

इस तरह हो सकती है लागू

कर्मचारी नेता और सरकार के जानकार अफसर बताते हैं कि पुरानी पेंशन बहाल करना बहुत मुश्किल नहीं है। नई पेंशन में सरकार ने अपना अंशदान पहले 10 प्रतिशत किया था। बाद में उसमें संशोधन करके 14 प्रतिशत तो किया ही है। कॉर्पस फंड को मैनेज करने के लिए अच्छे वित्तीय जानकारों की टीम बनाई जाए जो सही जगह निवेश करें। अगर कुछ नुकसान होता भी है तो उसे सरकार वहन कर सकती है। मैच्यॉरिटी से पहले फंड निकालने की जरूरत ही नहीं है। अभी तो 2005 के बाद के ज्यादातर कर्मचारी रिटायर ही कहां हो रहे हैं? जो पैसा जहां लगा है, उसे मैच्यॉरिटी तारीख के बाद निकाला जाए। वहीं, कर्मचारी नेता हरिकिशोर तिवारी कहते हैं कि हमारा पैसा कट ही रहा है और सरकार भी अपना अंशदान दे रही है। ऐसे में दिक्कत की कोई बात ही नहीं है। नई पेंशन में भी व्यवस्था है कि हर साल एक कंपनी से रकम निकालकर दूसरी कंपनी में निवेश किया जा सकता है। यह काम कर्मचारी खुद भी कर सकते हैं और सरकार के फंड मैनेजर भी। फिलहाल तो 2005 के बाद वाले ऐसे कर्मचारियों की संख्या बहुत कम है, जो पेंशन के हकदार होंगे।

अखिलेश को मिल सकता है फायदा

सपा मुखिया अखिलेश यादव का यह दांव 'हर्र लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा होय' सरीखा है। कर्मचारी उनके इस ऐलान से खुश हैं, जिसका उन्हें चुनावी लाभ मिल सकता है। वहीं सरकारी खजाने पर फिलहाल बोझ पड़ने नहीं जा रहा। जो कर्मचारी 2005 के बाद भर्ती हुए हैं, उनमें से ज्यादातर 10 साल बाद रिटायर होने शुरू होंगे। फिलहाल ऐसे कुछ कर्मचारी ही बीच में रिटायर हो सकते हैं, जो तदर्थ से नियमित हुए हैं।


कांग्रेस भाजपा के लिए फैसला मुश्किल

कांग्रेस और भाजपा में भी पुरानी पेंशन को लेकर चर्चा चल रही है, लेकिन उनके लिए यह आसान नहीं होगा। इसकी वजह है कि दोनों की सरकारें कई राज्यों में हैं। ऐसे में यूपी में घोषणा करने पर दूसरे राज्यों में भी मांग उठेगी। वहीं, केंद्र सरकार ने नई पेंशन लागू की है। उसके खिलाफ जाना भी भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। प्रदेश के कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस बारे में केंद्रीय नेतृत्व ही कोई दिशा तय करेगा।


जारी रखेंगे संघर्ष

सेवानिवृत्त कर्मचारी एवं पेंशनर्स असोसिएशन के अध्यक्ष अमरनाथ यादव कहते हैं कि हमने तो सभी दलों को पत्र लिखा था कि इसे वे घोषणा पत्र में शामिल करें। अब सपा ने इसे शामिल कर लिया। कोई भी सरकार आए लेकिन हम पुरानी पेंशन के लिए लगातार संघर्ष करते रहेंगे।

(स्रोत : नवभारत टाइम्स)


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